लेखनी कहानी - महाभारत और रामायण की कुछ लघु कथाएँ
अर्जुन और कर्ण
महाभारत के युद्ध के बाद अर्जुन में बहुत घमंड आ गया की उसने सूत पुत्र कर्ण को बहुत आसानी से मार दिया | उन्होनें ये बात कृष्ण के सामने बोली तो वह मुस्कुराने लगे | कुछ देर बाद कृष्ण ने अर्जुन को बताया की जो युद्ध में हुआ वह उसे समझ नहीं पाए | कृष्ण ने अर्जुन को बताया कि :
कर्ण ने अपना अपराजेय कवच और कुंडल जो जन्म से उनके शरीर से जुड़ा था वह ब्राह्मण रुपी इंद्र को दे दिये क्यूंकि इंद्र जानते थे इसके बिना कर्ण को हराना नाम्मुम्किन है | इसलिए अपने पुत्र अर्जुन की सुरक्षा के लिए इंद्र ने कर्ण से कवच और कुंडल मांग लिया और कर्ण दानवीर थे इसलिए उन्होनें वह दोनों चीज़ें बिना सोचे इंद्र को थमा दीं | इंद्र के पूछने पर की ये जानते हुए भी की मैं इंद्र हूँ तुमने मुझे कवच और कुंडल क्यूँ दिए तो कर्ण बोले की सूर्य पूजा के समय अगर आप मुझसे मेरी जान भी मानते तो में वो भी दे देता | इस बात पर इंद्र बहुत शर्मिंदा हुए और उन्होनें कर्ण को अमोघ शक्ति दी जिससे वह किसी एक व्यक्ति को बिना असफल हुए मार सकते थे | लेकिन उसके बाद वह इंद्र के पास वापस आ जाएगी |ये शक्ति वह थी जो कृष्ण ने घतोत्घच पर खर्च करवा दी जिससे कर्ण के जीतने की आखरी उम्मीद भी ख़तम हो गयी | इस हालत में कर्ण का सामना अर्जुन से हुआ | .
इसके इलावा कर्ण के ऊपर कुछ श्राप भी थे | पहला श्राप उनके गुरु परुशुराम ने दिया था क्यूंकि कर्ण ने उसने ये कह शिक्षा ली थी की वह ब्राह्मण है | इसलिए जब परशुराम को इस झूठ का पता चला उन्होनें कर्ण को श्राप दिया की जब वह अपने सबसे कठिन युद्ध में होंगे और जब उन्हें इस ज्ञान की ज़रुरत होगी तब यह सारा ज्ञान वह भूल जायेंगे | इसीलिए कर्ण अपनी मौत वाले दिन ब्रह्मास्त्र और अन्य हथियारों के इस्तेमाल की विधि भूल गए |
दूसरा श्राप था :
एक दिन कर्ण शिकार कर रहे थे और गलती से उन्होनें एक ब्राह्मण की गाय और उसके बछड़े को मार गिराया | ब्राह्मण ने श्राप दिया की युद्ध भूमि में सबसे कठिन समय पर उसके रथ के पहिये फंस जायेंगे और उनकी आवाजाही बाधित हो जाएगी | उनके सारथि शाल्य उसी समय वहां से चले गए और जब कर्ण रथ के पहिये को धरती से निकाल रहे थे तब कृष्ण के कहने पर अर्जुन ने उन पर बाणों की वर्षा कर दी जिससे उनकी मौत हो गयी |
कर्ण दानवीर थे | उनकी आदतें इतनी सज्जनता और दया से पूर्ण थीं की मौत उनके नज़दीक नहीं आ सकती थी | लेकिन कृष्ण ने फिर माया खेली | एक गरीब ब्राह्मण का वेश धर उन्होनें युद्ध क्षेत्र में घायल कर्ण से उनकी सभी अच्छे कर्मों का फल दान में मांग लिया | क्यूंकि कर्ण दानवीर थे उन्होनें झट कृष्ण की इच्छा पूर्ण कर दी | वह सुरक्षा कवच उन पर से हट गया और अर्जुन को उन्हें मारने में कोई तकलीफ नहीं हुई |
अंत में कृष्ण बोले – तुम फैसला करो की तुम दोनों में से बड़ा योद्धा कौन है , तुम अर्जुन जो मेरी सुरक्षा और सलाह के साथ युद्ध लड़ रहे थे या राधेय जो अकेले अपनी बदकिस्मती के साथ इस युद्ध में शामिल हुआ था | इस पर अर्जुन को अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होनें माना की कर्ण उनसे बेहतर योद्धा थे |